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History of Indus Valley Civilization in Hindi | सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास

Indus valley civilization

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सिंधु घाटी सभ्यता का इतिहास | History of Indus Valley Civilization in Hindi

भारतीय इतिहास मैं सिंधु घाटी सभ्यता एक महत्वपूर्ण अध्याय माना जाता है तथा विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में इस अध्याय से कई प्रश्न पूछे जाते हैं। आज हम इस अध्याय के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे साथ ही सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित कई महत्वपूर्ण प्रश्नों का उत्तर भी जानेंगे।

Indus valley civilization
History of Indus Valley civilization

1856 ईसवी में जॉन विलियम ब्रंटन ने कराची से लाहौर तक रेलवे लाइन बिछाने हेतु ईटों की आपूर्ति के लिए खुदाई प्रारंभ करवाई । खुदाई के दौरान ही इस सभ्यता का पहला अवशेष प्राप्त हुआ जिससे हड़प्पा सभ्यता का नाम दिया गया । हड़प्पा सभ्यता को सिंधु घाटी सभ्यता भी कहा जाता है ।

सिंधु घाटी सभ्यता की खोज का श्रेय रायबहादुर दयाराम साहनी को जाता है। उन्होंने ही सर्वप्रथम पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के महानिदेशक सर जॉन मार्शल के निर्देशन में 1921 ईस्वी में इस स्थान की खुदाई करवाई थी। अगले ही वर्ष 1922 ईस्वी में श्री राखल दास बनर्जी के नेतृत्व में पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले के मोहन जोदड़ो में स्थित एक बौद्ध स्तूप की खुदाई के समय एक और स्थान का ज्ञात हुआ। जिसके पश्चात यह अनुमान लगाया गया कि यह सभ्यता सिंधु नदी की घाटी तक ही सीमित है। जिसके फलस्वरूप इस सभ्यता का नाम सिंधु घाटी सभ्यता अथवा सैंधव सभ्यता दिया गया। सबसे पहले 1921 ईस्वी में हड़प्पा नामक स्थल पर खुदाई होने के कारण सिंधु सभ्यता का नाम हड़प्पा सभ्यता भी रखा गया।

सिंधु सभ्यता को कांस्य युगीन सभ्यता भी कहा जाता है, क्योंकि हड़प्पा वासियों ने ही सर्वप्रथम कांस्य निर्माण के तकनीक की जानकारी प्राप्त की थी। हालांकि इस सभ्यता में सर्वाधिक प्रयोग किया जाने वाला धातु तांबा था। सिंधु घाटी सभ्यता में लिखित और पुरातात्विक दोनों साक्ष्य मिलते हैं । परंतु, हड़प्पा लिपि अपठनीय होने के कारण इस काल के इतिहास का लेखन पुरातात्विक साक्ष्यों पर किया गया है।

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल कौन-कौन से हैं ? | What are the main sites of the Indus Valley Civilization?

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, चंदूहड़ो, लोथल, सुत्कागेंडोर, रोपड़, कालीबंगा, धौलावीरा, राखीगढ़ी इत्यादि है ।

सिंधु घाटी सभ्यता के विस्तार का वर्णन |Description of the Indus Valley Civilization

सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार उत्तर में जम्मू के मांडा से लेकर दक्षिण में नर्मदा के मुहाने तक और पश्चिम में मकरान समुद्र तट पर सुतकागेंडोर से लेकर पूर्व में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ तक है। सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित पुरास्थल भारतीय उपमहाद्वीप के भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से प्राप्त हुए हैं। सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार पूर्व से पश्चिम तक 1600 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक 1400 किलोमीटर था।

सिंधु घाटी सभ्यता के विकास एवं प्रमुख स्थल का विवरण | Description of the development and major sites of the Indus Valley Civilization

हड़प्पा- हडप्पा पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित मांटगोमारी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है। हड़प्पा नगर करीब 5 किलोमीटर के क्षेत्र में बसा हुआ था। हड़प्पा से प्राप्त 2 टीलों में पूर्वी टीले को नगर टीला तथा पश्चिमी टीले को दुर्ग किला के नाम से जाना जाता था। दुर्ग का आकार समलंब चतुर्भुज था। उत्खननकर्ताओं ने दुर्ग टीले को माउंट ‘एबी’ नाम दिया है। दुर्ग का मुख्य प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में तथा दूसरा प्रवेश द्वार दक्षिण दिशा में था। हड़प्पा के दुर्ग के बाहर उत्तर दिशा में लगभग 6 मीटर ऊंचे टीले को ‘एफ’ नाम दिया गया है, जिस पर अन्नागार, अनाज कूटने के वृत्ताकार चबूतरे और श्रमिकों के आवास का साक्ष्य मिला है। यहां श्रमिकों का आवास के नजदीक ही करीब 14 भट्टों और धातु बनाने की एक मंजूषा का अवशेष भी मिला है। इसके अतिरिक्त यहां पर कुछ महत्वपूर्ण अवशेष जैसे- एक बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल, पीतल का बना इक्का, ईटों के वृत्ताकार चबूतरे एवं गेहूं तथा जौ के दानों के अवशेष भी मिले हैं।

मोहनजोदड़ो- मोहनजोदड़ो पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के दाहिने किनारे पर अवस्थित है। मोहनजोदड़ो करीब 5 किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। मोहनजोदड़ो के टीलों को खोजने का श्रेय राखल दास बनर्जी को 1922 ईस्वी में प्राप्त हुआ है। यहां पूर्व और पश्चिम दिशा में प्राप्त दो टीलों के अतिरिक्त सार्वजनिक स्थलों में एक विशाल स्नानागार एवं महत्वपूर्ण भवनों में एक विशाल अन्नागार के अवशेष मिले हैं। मोहनजोदड़ो से कुंभकारों के 6 भट्टों के अवशेष, सूती कपड़ा, हाथी का कपाल खंड, गले हुए तांबे के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी एवं कांस्य के नृत्य नारी की मूर्तियों के अवशेष मिले हैं। मोहनजोदड़ो नगर के ‘एच आर’ क्षेत्र से जो मानव प्रस्तर मूर्तियां मिली हैं, उसमें से दाढ़ी युक्त शिविर विशेष उल्लेखनीय है। मोहनजोदड़ो के अंतिम चरण से नगर क्षेत्र के अंदर मकानों एवं सार्वजनिक मार्गों पर 42 कंकाल अस्त-व्यस्त दशा में पड़े हुए मिले हैं। इसके अलावा मोहनजोदड़ो से लगभग 1398 मोहरे प्राप्त हुई हैं। पत्थर के बने मूर्तियों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण सेलखड़ी से बना 19 सेंटीमीटर लंबा पुरोहित का धर है। चुना पत्थर का बना एक पुरुष का सिर, सेलखड़ी से बना एक मूर्ति विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसके अतिरिक्त अन्य अवशेषों में सूती कपड़े का साक्ष्य मिला है। कूबड़ वाले बैल की आकृति युक्त मोहरे, बर्तन पकाने के 6 घड़े, एक बर्तन पर नाव का बना चित्र, गीली मिट्टी पर कपड़े का साक्ष्य, पशुपति शिव की मूर्ति ध्यान की आकृति वाली मुद्रा उल्लेखनीय है। मोहनजोदड़ो की एक मुद्रा पर एक आकृति है जिसमें आधा भाग मानव का है और आधा भाग बाघ का है। यहां एक सिलबट्टा तथा मिट्टी का तराजू भी मिला है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त पशुपति की मुहर पर बैल का चित्र अंकित नहीं है।

चंदुहड़ो- मोहनजोदड़ो के दक्षिण में चंदुहड़ो नामक स्थान स्थित है। चंदुहड़ो नामक स्थान पर मुहर एवं गुड़ियों के निर्माण के साथ-साथ हड्डियों से भी अनेक वस्तुओं का निर्माण का साक्ष्य प्राप्त हुआ है। चंदुहड़ो की खोज सर्वप्रथम 1931 में एन गोपाल मजूमदार ने किया। यहां पर गुड़िया का निर्माण हेतु एक कारखाने का अवशेष मिला है। यहां पर सैंधव काल में संस्कृति के अतिरिक्त प्राक हड़प्पा संस्कृति, झुकर संस्कृति एवं झांगर संस्कृति के भी अवशेष मिले हैं। सौंदर्य प्रसाधनों में प्रयुक्त लिपस्टिक के अवशेष भी यहां से प्राप्त हुए हैं। तांबे एवं कांसे के औजार एवं सांचो के भंडार भी चंदुहड़ो से प्राप्त हुए हैं, जिससे पता चलता है कि मनके बनाने, हड्डियों की वस्तुएं बनाने, मुद्राएं बनाने आदि की दस्तकारी प्रथा यहां चली थी। चंदुहड़ो में एक मिट्टी की मुद्रा पर तीन घड़ियालों तथा दो मछलियों का चिन्ह प्राप्त हुआ है। चंदुहड़ो इस सभ्यता का एकमात्र पूरा स्थल है जहां से वक्राकार की ईटें मिली है।

लोथल- लोथल गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगावा नदी के किनारे स्थित है। लोथल से समकालीन सभ्यता के 5 स्तर पाए गए हैं। लोथल नगर के उत्तर में एक बाजार और दक्षिण में औद्योगिक क्षेत्र था। लोथल से एक घर के सोने के दाने सेलखड़ी की 4 मोहरे सीप एवं तांबे की बनी चूड़ियों और बहुत अच्छे से रंगा हुआ मिट्टी का जार मिला है। लोथल से एक अन्य अवशेषों में प्राप्त मृदभांड मिला है जिस पर एक चित्र उकेरा गया है जिसमें एक कौवा तथा लोमड़ी उत्कीर्ण है। नाव के आकार की दो मुहरे तथा लकड़ी का एक अन्नागार भी यहां से मिला है। यहां से आटा पीसने के 2 पाटन प्राप्त हुए हैं जो पूरे सिंधु घाटी सभ्यता में एकमात्र उदाहरण है। लोथल कि जो नगर योजना है और अन्य भौतिक वस्तुएं प्राप्त हुई है, उससे यह पता चलता है कि लोथल एक लघु हड़प्पा या लघु मोहनजोदड़ो नगर प्रतीत होता है।

रोपड़- रोपड़ पंजाब प्रदेश मैं सतलज नदी के तट पर स्थित है। 1950 ईस्वी में रोपड़ की खोज बी बी लाल ने की थी। यहां पर संस्कृति के पांच चरण मिलते हैं जो हड़प्पा चित्रित धूसर मृदभांड उत्तरी काले पोलीस वाले कुषाण, गुप्त और मध्यकालीन मृदभांड हैं। यहां प्राप्त मिट्टी के बर्तन, आभूषण, चार्ट फलक एवं तांबे की कुल्हाड़ी महत्वपूर्ण है। यहां पर मिले मकानों के अवशेषों से लगता है कि यहां के मकान पत्थर एवं मिट्टी से बनाए गए थे। यहां शवों को अंडाकार गड्ढों में दफनाया जाता था। रोपड़ में ऐसा कब्रिस्तान मिला है, जिसमें मनुष्य के साथ पालतू कुत्ता की भी दफनाया गया है। इस प्रकार की प्रथा नवपाषाण युग में ब्रुजहोम में प्रचलित थी।

कालीबंगा- कालीबंगा का अर्थ है काले रंग की चूड़ियां। कालीबंगा राजस्थान के गंगानगर जिले में घग्घर नदी के तट पर स्थित है। हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो की भांति यहां पर सुरक्षा दीवार घिरे दो टीले पाए गए हैं। कालीबंगा के दुर्ग जिले के दक्षिणी भाग में मिट्टी और कच्ची ईंटों से बने हुए पांच चबूतरे मिले हैं, जिससे शिखर पर हवन कुंडों के होने के साक्ष्य मिलते हैं। कालीबंगा नगर दुर्ग समानांतर चतुर्भुज आकार था। यहां पर मिले भवनों के अवशेष से स्पष्ट होता है कि यहां के भवन कच्ची ईंटो के बने थे। कालीबंगा से प्राप्त मोहरे मेसोपोटामिया के मुहरों के समकक्ष थी। कालीबंगा कब 1 फर्श पूरे हड़प्पा सभ्यता का एकमात्र उदाहरण है जहां अलंकृत ईटों का प्रयोग किया गया है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि घग्घर नदी के सूख जाने से कालीबंगा का विनाश हो गया।

सुरकोटदा- यह गुजरात के कच्छ जिले में स्थित है। सुरकोटदा की खोज 1964 में जगपति जोशी ने की थी। सुरकोटदा से प्राप्त अवशेषों में महत्वपूर्ण है घोड़े की अस्थियां एवं एक अनोखी कब्रगाह। सुरकोटदा के दुर्ग एवं नगर क्षेत्र दोनों एक ही रक्षा प्राचीर से गिरे हुए थे।

आलमगीरपुर- यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में यमुना नदी की सहायक हिंडन नदी के तट पर स्थित है। आलमगीरपुर की खोज 1958 में यज्ञ दत्त शर्मा द्वारा की गई थी। आलमगीरपुर सिंधु घाटी सभ्यता का सर्वाधिक पूर्वी पूरा स्थल है। जिससे या सिंधु घाटी सभ्यता का अंतिम अवस्था को सूचित करता है। यहां पर एक गर्त से रोटी बेलने की चौकी तथा कटोरे के टुकड़े प्राप्त हुए हैं।

रंगपुर- रंगपुर गुजरात के काठियावाड़ प्रदेश में भादर नदी के समीप स्थित है। रंगपुर की खुदाई ए रंगनाथन राव द्वारा 1953- 54 ईस्वी में की गई थी। यहां धान की भूसी के ढेर मिले हैं। यहां उत्तरोत्तर हड़प्पा संस्कृति के साक्ष्य मिले हैं।

बनावली- यह हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है। यहां दुर्ग तथा निचला नगर अलग अलग ना होकर एक ही प्राचीर से घिरे हुए थे। यहां एक मकान से वाश बेसिन के साक्ष्य मिले हैं, जो किसी धनी व्यक्ति का आवास होने का संकेत करता है। एक दूसरे मकान से यहां सोने, लाजवर्द, छोटे बटखड़े इत्यादि मिले हैं, जिससे ज्ञात होता है कि यह किसी जौहरी का मकान रहा होगा। यहां अच्छे किस्म के जौ मिले हैं। बनावली में जल निकासी प्रणाली का अभाव दिखाई देता है। यहां सड़कें ना तो सीधी मिलती थी ना एक दूसरे को समकोण पर कटती थी।

अलीमुराद – यह सिंध प्रांत में स्थित है, जहां से कुआँ, मिट्टी के बर्तन, कार्निलियन के मनके और पत्थरों से निर्मित एक विशाल दुर्ग के अवशेष मिले हैं। इसके अलावा यहां से बैल की लघु मृण्मूर्ति एवं कांसे की कुल्हाड़ी भी मिली है।

सुतकागेंडोर- यह दक्षिण बलूचिस्तान में दाश्क नदी के किनारे स्थित है। इसकी खोज 1927 ईस्वी में और औरेल स्टाइन ने की थी। हड़प्पा संस्कृति की परिपक्व अवस्था के अवशेष यहां पर मिले हैं। संभवतः यह समुद्र तट पर अवस्थित बंदरगाह है। सुतकागेंडोर से मनुष्य की अस्थि राख से भरा बर्तन, तांबे की कुल्हाड़ी, मिट्टी से बनी चूड़ियां और बर्तनों के अवशेष मिले हैं। सुतकागेंडोर का दुर्ग एक प्राकृतिक चट्टान पर बसाया गया था।

सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषता क्या है ? | What are the main features of the Indus Valley Civilization?

सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता इसकी नगर योजना थी। इस सभ्यता के सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थलों जैसे हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा आदि के नगर निर्माण में समरूपता थी। सिंधु घाटी सभ्यता के नगर दो भागों में बैठे हुए थे पश्चिम भाग एवं पूर्वी भाग। पश्चिम भाग का हिस्सा किला बंद होता था और उसमें शहर के प्रशासकीय वर्ग के लोग निवास करते थे। नगर का पूर्वी भाग जिला बंद नहीं होता था। पूर्वी भाग में नगर के केवल सामान्य लोग निवास करते थे।

सिंधु घाटी सभ्यता में प्राप्त मकानों के अवशेषों से स्पष्ट होता है कि यहां के मकानों के बीच एक आंगन होता था। आंगन के चारों और चार या पांच कमरे होते थे रसोईघर एवं स्नानागार भी बने होते थे। स्नानागार गली की ओर बने होते थे। घरों के दरवाजे खिड़कियां सड़क की ओर ना खुलकर पिछवाड़े की ओर खुलती थी। सिंधु घाटी सभ्यता में ईटों के निर्माण का निश्चित अनुपात 4:2:1 था।

सिंधु घाटी सभ्यता की सड़कें जाल के रूप में कई भागों को विभाजित करती थी। इस सभ्यता में सड़कें पूर्व से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण की ओर जाती हुई एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। सड़कों का निर्माण मिट्टी से किया गया था। सड़कों के दोनों ओर नालियों का निर्माण पक्की ईंटों द्वारा किया गया था। सिंधु घाटी सभ्यता में नालियों के जल निकास का जितना उत्तम प्रबंध था जो किसी अन्य समकालीन सभ्यता में देखने को नहीं मिलता  था।

सिंधु घाटी सभ्यता में आर्थिक स्थिति | Economic Situation in the Indus Valley Civilization

कृषि- सिंधु घाटी सभ्यता में सिंधु नदी तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा प्रतिवर्ष लाई गई उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी के कारण कृषि महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधि में था। इस उपजाऊ मैदान में मुख्य रूप से गेहूं और जौ की खेती की जाती थी, जो सिंधु घाटी सभ्यता की मुख्य फसल भी थी। इस सभ्यता में अभी तक 9 फसलों की पहचान की गई है। जिसमें चावल, जौ की दो किस्में, गेहूं की 3 किस्में, कपास, खजूर, तरबूज, मटर और एक ऐसी किस्म जिसे ‘ब्रासिका झूंसी’ की संज्ञा दी गई है। इसके अतिरिक्त मटर, सरसों, तेल और कपास की भी खेती की जाती थी। लोथल में हुई खुदाई में धान तथा बाजरे की खेती के भी साक्ष्य मिले हैं। सिंधु घाटी सभ्यता में खेती के कार्यों को कांस्य धातु के बने औजार से किया जाता था। संभवतः सिंधु घाटी सभ्यता के लोग ही सर्वप्रथम कपास उगाने प्रारंभ किए थे। लोथल से आटा पीसने की पत्थर की चक्की की 2 पार्ट भी मिली है।

पशुपालन- सिंधु घाटी सभ्यता में मुख्य पालतू पशुओं में डीलदार एवं बिना डील वाले बैल, भैंस, गाय, बैल, बकरी, कुत्ते, गधे, खच्चर और सूअर आदि पाए जाते थे। हाथी और घोड़े पालने का साक्ष्य इस सभ्यता में नहीं मिला है। लोथल और रंगपुर में घोड़े की मूर्तियों के अवशेष पाए गए हैं। कुछ कुछ पशु पक्षियों जैसे बंदर, खरगोश, हिरण, मुर्गा, तोता, मोर, उल्लू इत्यादि के खिलौनों के अवशेष एवं मूर्तियों के रूप पाए गए हैं।

शिल्प एवं उद्योग धंधे- सिंधु घाटी सभ्यता में तांबे में टिन मिलाकर कांसा तैयार किया जाता था। सिंधु घाटी सभ्यता में सूती वस्त्र का उल्लेख मिलता है। कालीबंगा से मिट्टी के बर्तन के टुकड़े पर सूती कपड़े की छाप मिली है। सिंधु घाटी सभ्यता में लोगों के द्वारा नाव बनाने के भी साक्ष्य मिले हैं। इस समय बनने वाले सोने-चांदी के आभूषणों के लिए सोना का भी साक्ष्य मिला हैं। सिंधु घाटी सभ्यता में खुदाई में तांबे एवं कांसे के उपकरण सबसे अधिक मात्रा में मिले हैं।

व्यापार एवं वाणिज्य- सिंधु घाटी सभ्यता के लोग पत्थर, धातु, शिल्प आदि का व्यापार करते थे। परंतु, जो वस्तु वे बनाते थे उसके लिए अपेक्षित कच्चा माल उनके नगरों में उपलब्ध नहीं होने के कारण वे उन्हें बाहरी देशों से व्यापारिक संपर्क स्थापित कर मंगवाते थे। तैयार माल की खपत अपने क्षेत्रों में नहीं हो पाती थी जिसके कारण वे वस्तुओं का निर्यात भी बाहरी देशों में करते थे। व्यापार में धातु के सिक्कों का प्रयोग नहीं करते थे बल्कि वह वस्तु विनिमय प्रणाली पर ही आधारित थे। मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, लोथल एवं कालीबंगा में प्रयुक्त बाटों की तौल का अनुपात 1,2,4,8,1,6,3,2 आदि था। मोहनजोदड़ो से सीप का तथा लोथल से हाथी दाँत से निर्मित एक एक पैमाना भी मिला है। सिंधु सभ्यता के लोग यातायात के रूप में दो पहियों एवं चार पहियों वाली बैलगाड़ी या भैस गाड़ी का उपयोग करते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर पर अंकित नाव का चित्र एवं मिट्टी का खिलौना मिलने से अनुमान लगाया जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग एवं व्यापार में नावों का प्रयोग करते थे। मेसोपोटामिया सिंधु घाटी सभ्यता के बीच व्यापारिक संबंधों के विषय में उपलब्ध साक्ष्य के आधार पर ज्ञात होता है कि दिलमुन से सोना, चांदी, तांबा, हाथी दांत की कंघी, लाजवर्द, मानिक के मनके, इमारती लकड़ी और मोती का आयात किया जाता था। भारत में लोथल से फारस की मुहरें प्राप्त हुई है।

सिंधु घाटी सभ्यता में लोगों का धार्मिक जीवन |Religious life of people in Indus Valley Civilization

सिंधु घाटी सभ्यता में लोगों का धार्मिक जीवन में धर्म की भूमिका महत्वपूर्ण थी। इस सभ्यता में धार्मिक विश्वासों में उस समय की अनेक हिंदू धर्म की मान्यता भी शामिल है। उस समय में देवी और देवताओं दोनों की पूजा करते थे। मातृ देवी की उपासना सर्वाधिक प्रचलित थी। सिंधु घाटी के निवासी मातृ देवी की उपासना जननी, उर्वरता या वनस्पति की देवी के रूप में करते थे। सिंधु घाटी सभ्यता में शिव की उपासना के भी प्रमाण प्राप्त हुए हैं। सिंधु घाटी सभ्यता मैं कहीं से भी किसी मंदिर का विशेष नहीं प्राप्त हुआ है। मोहनजोदड़ो एवं हड़प्पा से भारी मात्रा में मिट्टी की मृण मूर्तियों में से एक स्त्री मृण मूर्ति के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया जिससे ज्ञात होता है कि हड़प्पा सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मान कर इसकी पूजा करते थे। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील पर तीन मुख वाला एक पुरुष ध्यान की मुद्रा बैठा हुआ है। उसके सिर पर तीन सिंह है उसके बाएं और एक गेंडा और भैंसा है तथा दाएं और एक हाथी, एक बाघ एवं बीच में दो हिरण है। इस चित्र से ऐसा प्रतीत होता है कि आज के भगवान शिव की पूजा उस समय पशुपति के रूप में होती रही होगी। हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो से मिले पत्थर के बने लिंग एवं योनि से उनकी पूजा के प्रचलन में होने का भी प्रमाण मिलता है। वृक्ष पूजा के प्रमाण मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक सील पर बने पीपल की डालों के मध्य देवता से मिलता है। पशुओं में कूबड़ वाला सांड सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों के लिए विशेष पूजनीय था। ऐसा प्रतीत होता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के लोग भूत-प्रेत एवं तंत्र मंत्र में भी विश्वास करते थे। सिंधु घाटी सभ्यता में नाग पूजा के प्रमाण मिले हैं। हड़प्पा के लोगों में जो धार्मिक रीति रिवाज पर चली थी उनमें से कुछ आज भी हिंदुओं में पाए जाते हैं, जैसे मांग में सिंदूर भरना विवाहित हिंदू स्त्रियों के लिए सुहाग का प्रतीक है। हड़प्पा से प्राप्त एक मिट्टी की पट्टी पर एक महिष यज्ञ का दृश्य अंकित है जो हमें महिषासुर मर्दिनी की याद दिलाता है। चालाक लोमड़ी और प्यासे कौवे की कहानी हड़प्पा के कलशों पर अंकित है।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोगों का का सामाजिक जीवन|Social life of the people of Indus Valley Civilization

सिंधु घाटी सभ्यता में ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि उस समय का समाज मातृसत्तात्मक था। इस सभ्यता के लोग शांतिप्रिय जीवन जीते थे । भोजन के रूप में सिंधु घाटी सभ्यता के लोग जौ, खजूर एवं भैंस, सूअर, मछली इत्यादि के मांस खाते थे। इस सभ्यता में बर्तन के रूप में मिट्टी एवं धातु से बने कलश, थाली, कटोरा, तश्तरी, गिलास एवं चम्मच इत्यादि का प्रयोग किया जाता था। इस समय के लोग वस्त्र के रूप में सूती एवं ऊनी दोनों प्रकार के वस्त्र का प्रयोग करते थे। सिंधु घाटी सभ्यता के पुरुष वर्ग दाढ़ी मूछों के शौकीन थे। सिंधु घाटी सभ्यता के लोग मनोरंजन के लिए मछली पकड़ना, शिकार करना, पशु पक्षियों को आपस में लड़ाना, चौपड़, पासा खेलना इत्यादि साधन का प्रयोग करते थे।

सिंधु घाटी सभ्यता में शवों की अंत्येष्टि संस्कार में तीन प्रकार के प्रमाण मिले हैं- पूर्ण समाधिकरण, आंशिक समाधिकरण एवं दाह संस्कार।

सिंधु घाटी सभ्यता के पतन कब हुआ एवं इसके क्या कारण थे ? |When did the decline of the Indus Valley Civilization happen and what were its reasons?

सिंधु घाटी सभ्यता का पतन लगभग 1800 ईसा पूर्व में हो गया था । सिंधु घाटी सभ्यता के पतन अथवा विनाश का सर्वाधिक प्रचलित कारण आर्यों के आक्रमण को बताया गया। जबकि अन्य मत जो इतिहासकारों द्वारा दिए गए हैं उन्हें पूर्ण रूप से सत्य ना मानकर आंशिक सच माना ही उचित है क्योंकि इतने विस्तृत क्षेत्र में फैली सभ्यता का पतन का कारण कोई एक नहीं हो सकता बल्कि इसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं। सिंधु घाटी सभ्यता स्थल का पतन बाढ़ के कारण हुआ तो किसी स्थल का पतन अग्निकांड के कारण हुआ जबकि खुशी स्थल का प्रथम जलवायु परिवर्तन के कारण हुआ।

सर जॉन मार्शल द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता के पतन का कारण प्रशासनिक शिथिलता बताया गया है। जबकि और उस टाइम के द्वारा बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण इस सभ्यता का अंत हुआ। गार्डन चाइल्ड एवं मार्टीमर व्हीलर द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख कारण विदेशी आक्रमण एवं आर्यों के आक्रमण को बताया गया है।

इस लेख में हमें निम्नलिखित बातों की जानकारी मिली-

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सिंधु घाटी सभ्यता के विस्तार का वर्णन करो

भारत में सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल कौन सा है।

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल।

हड़प्पा सभ्यता।

 

नीचे दिए गए प्रश्नो के उत्तर आप कमेंट बॉक्स में जरूर दें ।

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल कौन कौन से हैं?

हड़प्पा सभ्यता की स्थापना कब हुई थी?

सिंधु सभ्यता का काल कब से कब तक था?

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि का क्या नाम था?

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि का क्या नाम था?

सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा शहर कौन सा है?

भारत में सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल कौन सा है?

मोहनजोदड़ो का सबसे बड़ा स्थल कौन सा है?

सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे छोटा स्थल कौन सा है?

सिंधु घाटी सभ्यता की जुड़वा राजधानी कौन सी थी?

सिन्धु सभ्यता साधन संपन्न होने पर भी उसमें भव्यता का आडंबर नहीं था। कैसे?

विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता कौन सी है?

मोहनजोदड़ो में सबसे ऊंचा चबूतरा कौन सा है?

मोहनजोदड़ो में कुओं की संख्या कितनी है?

 

 

 

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